किसी 'खास' की जानकारी भेजें। सरकारी स्कूलों में लौटता भरोसा : तीन
यह शिक्षा के निजीकरण का दौर है। यह देश के अभावग्रस्त परिवारों के बच्चों से उनके डॉक्टर, इंजीनियर बनने के सपनों के छिन जाने का दौर है। यह महँगी फीस, महँगे स्कूल और उम्दा पढ़ाई के नाम पर अमीर तथा गरीब बच्चों के बीच शिक्षा की खाई को और भी ज्यादा चौड़ा कर देने का दौर है। यह अमीरों के बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूलों का दौर है। इसलिए, यह गरीब बच्चों के लिए सरकारी स्कूलों को उनके हाल पर छोड़ देने का दौर है। इस दौर में हम देख रहे हैं कि सरकारी स्कूलों की हालत किस तरह बद से बदतर बना दी जा रही है। लेकिन, जरा ठहरिए! यह दूर—दराज के ग्रामीण इलाकों में ऐसे शिक्षक और समुदायों के साझा संघर्षों का भी दौर है जो सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता की नींव बन रहे हैं। महाराष्ट्र के सांगली जिले के गाँवों से ऐसे ही स्कूलों की कहानियाँ, जिनमें बदलाव की आहट साफ सुनाई दे रही हैं। फिलहाल ऐसे छह स्कूलों की कहानियों को दर्ज किया गया है। यहाँ प्रस्तुत है तीसरी कहानी।
यमगार बस्ती शाला
इस स्कूल के बनने की कहानी गजब-दिलचस्प है!
बारह साल पहले जब यहाँ यह स्कूल नहीं था तब एक आदमी ने अपनी जमीन दान कर दी। लेकिन, स्कूल के लिए जब भवन उपलब्ध नहीं था तब दो लोगों ने अपने घर दान दे दिए और खुद अपनी-अपनी झोपड़ियों में ही रहते रहे। लेकिन, जब पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक उपलब्ध नहीं था तब गाँव का ही एक बी.ए. पास युवक इसके लिए तैयार हुआ, जो महज एक हजार रूपये महीने के वेतन पर लगातार नौ सालों तक पढ़ाता रहा और इस तरह इस बस्ती के छोटे बच्चों को तीन किलोमीटर दूर स्कूल जाने से छुटकारा मिल गया। लेकिन, कक्षा में जब बच्चों को बैठने के लिए कुर्सी-टेबल नहीं थे तब पुणे में नौकरियाँ करने वाले गाँव के अन्य युवकों ने कुर्सी-टेबल उपलब्ध कराए। फिर बच्चों के माता-पिता ने बोर्ड, पंखे और साज-सज्जा के सामान उपलब्ध कराए। ग्राम पंचायत ने 52 इंच का कलर टीवी उपलब्ध कराया और बिजली-पानी की सुविधा दी।
और जब बच्चों ने साल-दर-साल अच्छे परीक्षा परिणाम दिए तब महाराष्ट्र के शिक्षा विभाग का ध्यान इस बस्ती शाला की ओर गया और जिला परिषद, सांगली ने 2014 में इस बस्ती शाला को प्राथमिक शाला का दर्जा दिया और इस जगह पर यह एक नया स्कूल भवन बनवाया। साथ ही यहाँ के शिक्षक को स्थाई नौकरी पर रखा।
अब इस साल से पहली से चौथी तक के 33 बच्चे ऑनलाइन शिक्षण हासिल कर रहे हैं। यानी शिक्षक मोबाइल से वाईफाई कनेक्ट करते हैं और इंटरनेट की मदद से गूगल में जाकर महाराष्ट्र सरकार और जिला परिषद के पाठ्यक्रम सर्च करते हैं और अपनी जरूरत के हिसाब से बच्चों को सम्बन्धित पाठ पढ़ाते हैं।
इस तरह, जब देश के बहुत सारे स्कूल डिजिटल बनने की कतार में बहुत पीछे हैं तब महाराष्ट्र के एक सुदूर गाँव का यह स्कूल डिजिटल स्कूलों में शामिल है।
यह है जिला मुख्यालय सांगली से 80 किलोमीटर दूर यमगार बस्ती का स्कूल, जो बनपुरी ग्राम पंचायत के अन्तर्गत आता है। इस बस्ती में करीब एक हजार लोग रहते हैं। इन्होंने यह साबित किया है कि जन-सहयोग से किस तरह सरकारी स्कूलों को एक नई पहचान दी जा सकती है और साथ ही इनमें सुधार भी लाया जा सकता है।
अहम बात यह है कि यहाँ के ज्यादातर किसान लोगों ने आने वाली पीढ़ी के लिए शिक्षा का महत्त्व समझा और एक साझा पहल की है। इस पहल का नतीजा बारह साल बाद आज दिखाई दे रहा है। शिक्षा में होने वाले प्रयास तुरन्त नहीं दिखते, इसलिए इस बस्ती के प्रयास धीरे-धीरे परवान चढ़े हैं।
आखिर कौन हैं ये लोग? आइए, ऐसे महान लोगों से आपका परिचय कराते हैं। जानते हैं इनके नाम और काम के बारे में।
वर्ष 2005 में तातोवा महाकंडी यमगार नाम के व्यक्ति ने स्कूल के लिए 5,000 वर्ग मीटर जमीन दान दी। इसके बाद जीजाराम यमगार और विश्वास काले नाम के दो व्यक्तियों ने अपने-अपने घर दिए और खुद बाजू की झोपड़ियों में रहे। फिर बिरू नामदेव मूढ़े नाम के नवयुवक ने बारह हजार रूपए सालाना पर बतौर शिक्षक नौ सालों तक बच्चों को पढ़ाया। इसके अलावा कई नाम नींव के पत्थर की तरह हैं।
अब इस स्कूल में दो शिक्षक हैं। एक तो खुद बिरू नामदेव मूढ़े और दूसरे स्कूल के मुख्य अध्यापक भारत भीमशंकर डिगोले।
(ऐसे तीन अन्य स्कूलों की कहानी आगे की कडि़यों में प्रस्तुत की जाएगी। इस शृंखला की पिछली कहानियाँ इन यहाँ पढ़ी जा सकती हैं तुलाराम बुआचा शाला यमाजी पाटलीची वाड़ी शाला
शिरीष खरे, पुणे
टिप्पणियाँ
अभी तक इस श्रंखला की तीनों
अभी तक इस श्रंखला की तीनों कहानियां पढ चुका हूं। ये प्रेरक तो हैं ही साथ ही सरकारी स्कूलों के प्रति टूट चुके विश्वास की बहाली की रोचक कथा भी है। यह सिद्ध करती है जन सहयोग से बडे काम सहजता से किये जा सकते हैं, जरूरत है समाज के प्रति अपने नजरिये के बदलाव की, समर्पण और निष्ठा की। इस प्रयास में भागीदार रहे सभी साथियों को शत शत वंदन।
प्रमोद दीक्षित 'मलय'
शैक्षिक संवाद मंच
सरकारी स्कूलों के प्रति
सरकारी स्कूलों के प्रति नजरिया बदल रहा है, सभी शिक्षकों को बधाई।।।।