किसी 'खास' की जानकारी भेजें। मिलिए शबाना सुल्ताना और खेमशंकर से
दिनांक 30 नवम्बर,2012 को स्वैच्छिक शिक्षक मंच, टोंक,राजस्थान की बैठक में नियमित रूप से भाग लेने वाले कुछ शिक्षकों से बातचीत की गई। स्वैच्छिक शिक्षक मंच अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन द्वारा शुरू की गई एक पहल है,जिसमें शिक्षक विभिन्न अकादमिक विषयों पर मिल-बैठकर चर्चा करते हैं। टोंक जिले में ऐसे सात मंच सक्रिय हैं।
उद्देश्य था स्वैच्छिक शिक्षक मंच की प्रक्रिया को समझना। यह जानने का प्रयास था कि इस मंच की कौन-सी ऐसी बात या गुण है जो शिक्षकों को इससे जोड़े रखती है या इसकी तरफ आकर्षित करती है। मंच से शिक्षक क्या प्राप्त कर रहे हैं। जो वे सीख या जान रहे हैं उसे अपने विद्यालय में, अपने शिक्षण में, व्यवहार में किस तरह लागू कर रहे हैं।
शिक्षक मंच को लेकर शिक्षक क्या सोचते हैं, शिक्षक मंच में वे और क्या करना चाहते हैं, उसको आगे बढ़ाने के लिए उनके मन में क्या योजनाएँ या सुझाव हैं।
टोंक की ही एक बस्ती जिसे रिफ्यूजी बस्ती के नाम से जाना जाता है, में स्थित प्राथमिक विद्यालय में हमें वहां के प्रधानाध्यापक खेमशंकर जी से मिलना था। जब वहाँ पहुँचे तब शाम के चार बज रहे थे। दो कमरों के सामने चारदिवारी से घिरे एक आँगन में एक अध्यापिका अपनी टेबिल कुर्सी लगाए बैठी थीं। उनके चारों तरफ पाँच-छह बच्चे जमा थे, वे सम्भवत: अपनी कॉपियाँ जँचवा रहे थे। ये शबाना सुल्ताना थीं। उर्दू, गणित की अध्यापिका। आँगन में दरी पर दस-बारह बच्चे बैठे थे और उनके सामने खड़े थे एक अध्यापक। कहना न होगा कि वे खेमशंकर ही थे। सभी ने हमारा अभिवादन किया। हमने बच्चों से उनके नाम आदि पूछे। बच्चों को हम से मुलाकात के लिए रोका गया था। अन्यथा मुस्लिम बहुल बस्ती होने के कारण शुक्रवार को दोपहर में जल्दी छुट्टी हो जाती है। परिचय के बाद बच्चों को छुट्टी दे दी गई।
शबाना सुल्ताना और खेमशंकर जी से बातचीत करने के लिए हम उनके छोटे से ऑफिसनुमा कमरे में बिछी दरी पर बैठे थे। कमरे में दो अलमारियाँ थीं। एक में करीने से किताबें सजी हुईं थीं और दूसरी में टीएलएम की सामग्री दिखाई दे रही थी।
हमारे साथ टोंक जिला संस्थान के नरेन्द्र जाट और मनीषा शर्मा भी थे। हालांकि हर जगह हमने उनसे आग्रह किया था कि शिक्षक से परिचय कराने के बाद वे हमें उनके साथ अकेला छोड़ दें। हमारे आग्रह को उन्होंने स्वीकार भी किया था। यहाँ भी विद्यालय के आँगन में बैठे थे।
शबाना सुल्तान : स्वैच्छिक शिक्षक मंच की नई सदस्य
बीएड हूँ। इंग्लिश में एमए हूँ। पहले एसटीसी भी कर लिया था। घर वाले चाहते थे कि टीचर लाइन में जाऊँ। पर नौकरी करने की बहुत इच्छा नहीं थी तो पढ़ाई जारी रखी। फिर मौका मिला तो नौकरी कर ली। बच्चों को पढ़ाना तो अच्छा लगता ही था। उर्दू से पोस्टिंग हुई थी 2004 में। चार साल चुरू रहकर आई । फिर दो साल मालपुरा में और अब दो साल से यहाँ हूँ।
वीटीएफ के बारे में खेमशंकर जी ने ही बताया था। नरेन्द्र जी भी हमारे स्कूल में आते ही रहते हैं। मुझे भी मीटिंग के लिए आमंत्रित किया। एक बार तो मैं समय की कमी के कारण नहीं जा सकी। फिर अगली मीटिंग में गई। मुझे बहुत अच्छा लगा। वहाँ सब अपनी इच्छा से आते हैं। सरकारी मीटिंग में तो बंदिश होती है कि अगर आप पिछली मीटिंग में नहीं आए तो आपको नोटिस आ जाएगा कि क्यों नहीं आए। यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं है। यहाँ विचार भी खुले रूप से आते हैं और चर्चा भी अच्छी होती है।
पिछली मीटिंग में ‘धरती के आकार’ पर चर्चा हुई थी। इसमें जो वीडियो क्लिप बताई गई, उससे फायदा हुआ। इस क्लिप में पानी का जहाज धीरे धीरे गायब होता दिखाई देता है। जिससे समझ आता है कि पृथ्वी चपटी नहीं गोल है। वैसे हम बच्चों को पानी के मटके पर चींटी के चलने और न गिरने का उदाहरण देते हैं। पर यह उदाहरण ज्यादा अच्छा है।
मैंने अभी दो मीटिंग ही अटैंड की हैं। पिछली मीटिंग में मेरे अलावा चार और महिलाएँ थीं। महिलाओं की संख्या कम है। कम होने का एक कारण तो छुट्टी का दिन होना होता है। सबके घर के काम होते हैं खासकर जिनके छोटे बच्चे हैं। पर यह भी तथ्य है कि जब टोंक में वीटीएफ शुरू हुआ था तो महिलाओं और पुरुषों की संख्या बराबर ही रहती थी। दस-पन्द्रह महिलाएँ और दस-पन्द्रह पुरुष। लेकिन फिर महिलाओं ने सोचा हम अपना अलग फोरम बनाएँ। उन्होंने बनाया भी। पर वह ज्यादा दिन चल नहीं पाया। न ही महिलाएँ इस फोरम में लौटकर आईं।
खेमशंकर : कुछ हम भी करें
मेरे पिता वनस्थली विद्यापीठ में सर्विस करते थे । मेरी शिक्षा भी वहीं हुई पाँचवीं तक। फिर आगे की पढ़ाई टोंक जिले के नवोदय विद्यालय में हुई। फिर ग्यारहवीं-बारहवीं जयपुर के नवोदय विद्यालय में हुई। फिर घर वालों ने बेसिक स्कूल टीचर सर्टीफिकेट (एसटीसी) करने को कहा। मैंने एसटीसी किया और फिर 1998 में शिक्षक बन गया अंकों के आधार पर।
पास के एक गाँव बरौनी में मिडिल स्कूल में पाँच साल पढ़ाया। फिर यहाँ तबादला करवा लिया। पिछले सात साल से यहाँ हूँ। शिक्षक का काम करते हुए मैंने बीए, बीएड इग्नू से किया। एमए भी कर लिया हिस्ट्री में। लेकिन अब तक ये सब मेरी परसनल फाइल में नहीं जुड़ा है।
मंच से परिचय
गर्मियों की छुट्टियों में जो ट्रेनिंग होती हैं, उसमें फाउण्डेशन के लोग शामिल हुए थे उन्होंने वीटीएफ के बारे में बताया था। पहले बीआरसी के पास एक सरकारी बिल्डिंग में एक मीटिंग हुईं थी। जिसमें गणित विषय पर चर्चा हुई थी। गिनती माला बनाकर। दो-तीन मीटिंग वहाँ हुईं। फिर उसके बाद अज़ीमप्रेमजी फाउण्डेशन के आफिस में होने लगीं।
इसमें यह अच्छी बात है कि जो शिक्षक स्वेच्छा से आना चाहें, अपनी समस्या रखना चाहें, मिलकर हल निकालना चाहें, वे ही आते हैं। पहले यह सोच थी कि ये जो सब सरकारी शिक्षक हैं ,बस शिक्षक बन गए हैं। पढ़ा रहे हैं, नहीं पढ़ा रहे हैं बस तनखा उठा रहे हैं। लेकिन इन बैठकों से ही पता चला कि बहुत सारे शिक्षक ऐसे नहीं हैं। वे अलग तरह से सोचते हैं। हमसे कहीं ज्यादा अच्छे हैं। अगर वे एक जगह इकठ्ठे हो रहे हैं और वे कुछ परिवर्तन सोच रहे हैं तो सरकारी स्कूलों के हालत भी बदल सकते हैं। वीटीएफ में हम जो विषय चुनते हैं वह खुद की इच्छा से ही चुनते हैं। पहले तो अज़ीमप्रेमजी फाउण्डेशन के ही रिसोर्स परसन होते थे। लेकिन अब कुछ शिक्षक भी रिसोर्स परसन होने लगे हैं। वीटीएफ में शिक्षक अपनी जिज्ञासा भी व्यक्त करते हैं। जो शिक्षक कुछ जानना चाहते हैं, सीखना चाहते हैं वे ही छुट्टी के दिन समय निकालकर वहाँ आते हैं। रिसोर्स परसन सवालों के जवाब भी देते हैं। ऐसा नहीं है कि केवल रिसोर्स परसन ही बोलते जाते हैं, हम भी बीच में बोलते हैं। मैंने अब तक बीस मीटिंग अटेंड की होंगी।
मंच ने बदली है सोच
इन बैठकों से हमारी सोच पर बहुत प्रभाव पड़ा है। एक फिल्म एक रुका हुआ फैसला भी एक बैठक में दिखाई गई थी। जिससे समझ आया कि सोच किस तरह बदलती है। इससे यह समझने का मौका मिला कि कई बातों के पीछे जो हम सोचते हैं उसके अलावा भी कई और कारण होते हैं, हो सकते हैं। जैसे कोई बच्चा अगर स्कूल नहीं आ रहा है तो उसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे हो सकता है उसकी तबीयत खराब हो, उसके माता-पिता ने रोक लिया हो। हो सकता है उसने होमवर्क नहीं किया हो। हो सकता है कि हमने उसे अगले दिन कॉपी-पेंसिल लेकर आने के लिए कहा था और वह उसके पास नहीं है, इसलिए वह नहीं आ रहा है। तो इस बात को समझना और फिर बच्चे से व्यवहार करना। इस तरह हमारी सोच, हमारे स्वभाव को भी इन चर्चाओं ने बदला है। पहले हम थोड़े एग्रेसिव थे, अब वह कम हुआ है।
जादुई संख्या निकालना, विटामिन की खोज जैसे विषयों पर बातचीत हुई है। लकड़ी के बोर्ड जिओ शेप,टेनग्राम, हिन्दी भाषा में मुहावरों तथा लोकोक्तियों के क्या अर्थ हैं आदि विषयों पर बैठक में चर्चा हुई । मैंने बच्चों के साथ टेनग्राम का उपयोग किया।
मंच में बहुत सम्भावना है
शबाना जी के अलावा मैंने चार-पाँच और शिक्षकों को भी वीटीएफ से जोड़ा । मुझे जो शिक्षक अपनी तरह का या सकारात्मक सोच का दिखता है उसे मैं वीटीएफ में जोड़ने की कोशिश करता हूँ। वैसे वीटीएफ अच्छी चल रही है। पर दो-चार बिन्दुओं पर मैं संतुष्ट नहीं हूँ।
जैसे नए लोग तो जुड़ रहे हैं, पर पुराने लोग कम क्यों हो रहे हैं। मैंने इस पर सोचने की कोशिश की। अब शैक्षिक विषय तो ठीक हैं। पर विद्यालय में कई और तरह की समस्याएँ भी आती हैं, जिन पर शिक्षक चर्चा करना चाहते हैं। जैसे विद्यालय में उपस्थिति नहीं है, या हमारे विद्यालय में एक बच्चा ऐसा है जो बहुत समझाने पर विद्यालय नहीं आ रहा है। या कि विद्यालय में दोपहर के बाद बच्चे आते ही नहीं हैं। या कि कोई कहे कि मुझे प्रश्नपत्र बनाना सीखना है। जैसे मुझे कैश बुक लिखना सीखना है। क्योंकि छात्रवृति का हिसाब रखना है। हालांकि ऐसे विषय अभी निकलकर नहीं आ रहे हैं, पर इन पर भी चर्चा होनी चाहिए। मैंने एकाध बार कोशिश की । लेकिन बहुमत न होने के कारण मेरा विषय नहीं चुना गया। जैसे पिछली दो-तीन मीटिंग से मैं आई क्यू विषय लिख रहा हूँ। मैं यह समझना चाहता हूँ कि यह क्या होता है। ताकि हम बच्चों के बारे में उनके सीखने के बारे में, सीखने की उनकी गति के बारे में समझ बना सकें। वीटीएफ की थीम तो यही है कि जिसको जो आता है वह दूसरों को बताए। और जिसको जो नहीं आता है वह दूसरों से पूछे।
असल में हो यह रहा है कि किसी एक विषय पर तो सब सहमत हो नहीं पाते हैं, तो दो-तीन विषय अन्त में दे देते हैं कि इनमें से तय कर लीजिए। और फिर नरेन्द्र जी पर छोड़ देते हैं। पर कई बार रिसोर्स परसन नहीं होने के कारण विषय बदलना भी पड़ता है। पहले तो विषय बैठक के अंत में ही चुना जाता था। और उसको चुनने में बहुत समय खराब होता था। तो मैंने ही यह सुझाव दिया कि क्यों न पर्ची पर सबसे लिखवा लिया जाए।
स्वैच्छिक शिक्षक मंच के लिए शिक्षक समिति : एक सुझाव
अज़ीमप्रेमजी फाउण्डेशन कोशिश कर ही रहा है। शिक्षकों से सम्पर्क कर रहा है, बैठक का इन्तजाम कर रहा है। पर यह बैठक तो हम शिक्षकों की है, हमें ही चलानी है, तो हम शिक्षकों को भी कुछ करना चाहिए। तो मेरा सुझाव है कि वीटीएफ चलाने के लिए शिक्षकों की एक समिति बने। इस समिति में ऐसे शिक्षक हों जो वीटीएफ में नियमित रूप से आ रहे हैं, या जो वीटीएफ में सक्रियता से भाग लेते हैं, या जिनमें कुछ विशेषज्ञता भी है। ऐसे पाँच-सात शिक्षकों को अपन इन शिक्षकों के एक लीडरग्रुप के रूप में देख सकते हैं। और समिति से राय ले सकते हैं कि वीटीएफ में क्या कमी है और उसे कैसे सुधारा जाए।
हमें ही विषय चुनना है और हमें ही उस पर चर्चा करनी है। हमें ही समाधान निकालना है। हमें इनसे मदद लेनी है अगर किसी विषय में हम नहीं जानते हैं तो। मैंने दो शिक्षकों से इस बारे में बातचीत भी की। वे भी मेरे सुझाव से सहमत हैं। अभी समिति बनी नहीं है, पर मैं सक्रिय शिक्षकों के नम्बर आदि ले रहा हूँ, ताकि उनसे चर्चा कर सकूँ।
अगर समिति बनेगी तो एक तो वह तारीख सबकी सहमति से तय करेगी। इसी तरह विषय हम इस तरह चुनना चाहेंगे कि जैसे छमाही परीक्षा आ रही है, तो उससे सम्बन्धित बातों पर चर्चा हो। जब एडमीशन का समय आए तो आरटीई पर चर्चा हो। विद्यालय में आने वाली वास्तविक समस्याओं पर भी हम चर्चा करना चाहते हैं। वीटीएफ में हम अच्छी-अच्छी चीजें तो सीखते हैं पर जो बुनियादी समस्याएँ हैं उन पर चर्चा नहीं होती। हम चाहते हैं कि उन पर भी चर्चा हो। ऐसा भी हो सकता है कि किसी मीटिंग में चार समूह बना दिए जाएँ और हर समूह में अलग अलग विषयों पर चर्चा हो। जिनकी जिसमें रुचि हो वे उसमें बैठें।
मेरा एक सुझाव यह भी है कि अगर दो घण्टे की मीटिंग हो रही है तो उसमें आखिरी के पन्द्रह मिनट इस बात पर चर्चा की जाए कि यदि किसी की यदि ऐसी समस्या है जिस पर तुरन्त बात करने की जरूरत है। या दो तीन शिक्षक बैठकर, जिनके पास समय हो उस पर चर्चा करके मदद कर दें।
हम अगली एक-दो मीटिंग में ही इसको करने की कोशिश करेंगे। और आप पाएँगे कि वीटीएफ में बदलाव हुआ है।
(खेमशंकर राजकीय प्राथमिक विद्यालय, रिफ्यूजी टोंक में प्रधानाध्यापक हैं और शबाना सुल्ताना , इसी विद्यालय में अध्यापिका हैं। उनसे मीरा गोपीचन्द्रन तथा राजेश उत्साही ने बातचीत की। लिप्यांतरण ,फोटो तथा सम्पादन : राजेश उत्साही)