किसी 'खास' की जानकारी भेजें। एक बातचीत बुद्धिप्रकाश साँवल से
बीते 30 नवम्बर,2012 को स्वैच्छिक शिक्षक मंच, टोंक,राजस्थान की बैठक में नियमित रूप से भाग लेने वाले कुछ शिक्षकों से बातचीत की गई। स्वैच्छिक शिक्षक मंच अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन द्वारा शुरू की गई एक पहल है,जिसमें शिक्षक विभिन्न अकादमिक विषयों पर मिल-बैठकर चर्चा करते हैं। टोंक जिले में ऐसे सात मंच सक्रिय हैं।
उद्देश्य था स्वैच्छिक शिक्षक मंच की प्रक्रिया को समझना। यह जानने का प्रयास था कि इस मंच की कौन-सी ऐसी बात या गुण है जो शिक्षकों को इससे जोड़े रखती है या इसकी तरफ आकर्षित करती है। मंच से शिक्षक क्या प्राप्त कर रहे हैं। जो वे सीख या जान रहे हैं उसे अपने विद्यालय में, अपने शिक्षण में, व्यवहार में किस तरह लागू कर रहे हैं।
शिक्षक मंच को लेकर शिक्षक क्या सोचते हैं, शिक्षक मंच में वे और क्या करना चाहते हैं, उसको आगे बढ़ाने के लिए उनके मन में क्या योजनाएँ या सुझाव हैं।
यह बातचीत अनौपचारिक वातावरण में हुई। चित्र में बाईं और बुद्धिप्रकाश हैं। फोटो : मीरा गोपीचन्द्रन ।
बुद्धिप्रकाश साँवल : पढ़ने से पढ़ाने तक
मैं एक गरीब परिवार से था। पिताजी सिलाई का काम करते थे। मैं छोटा था तभी मेरे पिताजी का निधन हो गया था। माँ और मेरे बड़े भाई साहब काम करते थे। बड़े भाई उस समय फस्टईयर या सेकण्ड ईयर में पढ़ रहे थे। कॉलेज होते ही उन्होंने भी सिलाई का काम शुरू कर दिया था। हमारा घर एक ऐसे मोहल्ले में था जहाँ शाम होते ही लोग शराब के नशे में होते थे। खेलने का माहौल तो था ही नहीं। पिताजी की दुकान थी,जिस अब चाचा जी सम्भालते थे। मैं भी सबेरे दुकान जाता और फिर वहाँ से स्कूल और स्कूल से वापस दुकान जाता और फिर सीधे घर। इस तरह मोहल्ले से हमारी कनेक्टिविटी उस तरह की नहीं रही। ज्यादातर समय पढ़ाई और दुकान में ही बीता।
टोंक में व्यावसायिक रूप से ज्यादातर बीड़ी बनाने का कार्य होता है। तो मैंने भी कॉलेज तक शिक्षा के साथ-साथ बीड़ी बनाने का काम भी किया और सिलाई का भी कार्य किया। फिर मैंने बीएड किया। बीएड करने के बाद मैंने टोंक के एक प्राइवेट स्कूल बालनिकेतन में 10 जनवरी 1987 से मैंने अपना शिक्षण कार्य प्रारम्भ किया। 29 अगस्त 1988 से शासकीय विद्यालय में थर्ड ग्रेड शिक्षक के रूप में शिक्षण आरम्भ किया।
सोहेला पंचायत है। वैसे नोडल तो पंचायत पर ही होते हैं। पर वहां पर मिडिल नहीं है। पीएसस्कूल है। पर विभाग ने पता नहीं क्या देखा और नोडल दे दिया। मैंने कई बार प्रयास भी किया। बीओ साहब को लिखकर भी दिया कि नोडल होने से स्कूल में परेशानी आती है। प्रधानाध्यापक रहते हुए तो सात पीरियड भी पढ़ा सकते हैं। क्योंकि विद्यालय का काम है। पर नोडल होने से महीने में दो बार टोंक में मीटिंग के लिए आना पड़ता है और चार बार पंचायत में जाना पड़ता है। मैं आर्थिक खर्च की बात नहीं कर रहा हूँ । पर इसमें समय बहुत जाता है। विद्यालय समय में यदि मुझे आफिस जाने के लिए कहा जाता है तो बुरा लगता है। अगर आप 24 घण्टे में से 12 घण्टे विद्यालय के कर दें तो भी मु्झे वहीं आनन्द आएगा।
मेरा ज्यादा से ज्यादा प्रयास रहता है कि मैं बच्चों से जुडूँ। 2009 में मेरी प्रधानाध्यापक पद पर पदोन्नित हो गई है। प्रधानाध्यापक की जिम्मेदारियों के साथ शिक्षण कार्य भी जरूरी है। मेरे अपने टाइमटेबिल में चार पीरियड हैं जिसमें छठवीं, सातवीं, आठवीं में गणित और तीसरी, चौथी, पांचवीं में पर्यावरण अध्ययन या कोई भी विषय लेकर मैं पढ़ाता हूँ । मुझे गणित पढ़ाना सबसे अच्छा लगता है।
स्वैच्छिक शिक्षक मंच से परिचय
मैं नोडल मीटिंग में अक्सर नरेन्द्र जाट जी को देखा करता था। बीआरसी की मीटिंग में, वेकेशन में होने वाली डिपार्टमेंटल मीटिंग और ट्रेनिंग में भी वे आया करते थे। यह अब से चार-पाँच साल पहले की बात है। मैं तो इनको जानता नहीं था। मैं सोचता था कि हो सकता है ये डिपार्टमेंट के ही कोई व्यक्ति हैं। इनकी आदत थी और अब भी है कि बैठकर देखना और ऑब्जर्वेशन करना और लिखते रहना। इस आदत की वजह से मुझको लगा कि ये अध्यापक तो नहीं हो सकते हैं। फिर इनसे परिचय हुआ। पता चला कि ये अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन में काम करते हैं। नरेन्द्र जी ने बताया कि एक टीचर फोरम है। आप भी उसमें आएँ।
मैं आया। मैंने देखा कि यहाँ जो शिक्षक आते हैं वे तो हमारी ही विचारधारा के शिक्षक हैं। सब स्वेच्छा से अपना समय देते हैं। सभी विद्यालय समय के बाद ही आते हैं। अपने समय में। यहाँ ग्रुप में डिस्कस होता है। यहाँ खुद को बोलने का मौका मिलता है। सब बैखोफ बोलते हैं। मैं यहाँ लगभग 25-30 मीटिंग अटैंड कर चुका हूँ। विषय के बारे में जानकारी मिलती है। रिसोर्स परसन जो जानकारी देते हैं, हम कोशिश करते हैं कि उसे हम विद्यालय में प्रयोग करें। उसी तरीके से पढ़ाएँ। यहाँ हम दो घण्टे के लिए ही आते हैं लेकिन इसके लिए ही तैयार होकर आते हैं। बैठक लेने वाला व्यक्ति भी यहाँ तैयारी करके आता है।
यहाँ लगभग 20-25 व्यक्ति तो आते ही हैं, उनमें नियमित रूप से 20 व्यक्ति हैं। ये सभी व्यक्ति पढ़ाने में रुचि लेते हैं, वे समय देते हैं। विद्यालय में भी समय देते हैं। महिलाएँ कम हैं केवल तीन-चार। क्योंकि उनके घर के अपने काम होते हैं।
मंच से जो मिला
हिन्दी मुहावरों पर एक बैठक हुई थी वह अच्छी लगी। एक पैराशूट पर हुई थी वह भी अच्छी थी। यहाँजिस विषय पर बात होती है, वह बातचीत हम विद्यालय में जाकर उस विषय के शिक्षक से करते हैं। चाहे विज्ञान की बात हो या हिन्दी की बात हो। उन्हें सलाह देते हैं कि ऐसा भी करना चाहिए।
जैसे एक बैठक में मैंने चर्चा सुनी कि शिक्षण में बच्चों को भी शामिल करना चाहिए। मैंने अपने स्कूल में देखा कि एक मैडम बच्चों को विज्ञान पढ़ा रही थीं और खुद ही प्रयोग कर रही थी। प्रयोग था प्याज की झिल्ली को माइक्रोस्कोप में देखना। मैंने उनसे कहा कि मैडम प्रयोग तो आप ही कर रही हैं। क्यों न बच्चों से भी करवाएँ। बच्चों से भी झिल्ली निकलवाएँ, स्लाइड बनवाएँ और माइक्रोस्कोप में देखना सिखाएँ। मैडम ने यह किया और फिर सारी कक्षा सातवीं-आठवीं ने यह किया उन्हें बहुत अच्छा लगा।
मैने एक बार निथारीकरण का प्रयोग बच्चों से करवाया। मैं विज्ञान पढ़ाता तो नहीं हूँ , पर मैंने कहा चलो करके देखता हूँ। उस दिन बरसात हो रही थी, मैंने बच्चों को बता रहा था कि देखो कितना गन्दा पानी होता है इसे ही हम पीते हैं। बच्चों ने कहा इसे हम कैसे पीते हैं मैंने कहा चलो अपन निथारीकरण यानी पृथ्थकरण का प्रयोग करके देखते हैं। मैंने दो-तीन टेस्टटयूब बुलवाईं उनमें अलग-अलग तरह का पानी भरा और फिर प्रयोग किया।
मंच को आगे कैसे बढ़ाएँ
एक-दो शिक्षकों से मैंने कहा कि इस फोरम में आएँ। पर वे कहते हैं कि समय नहीं हैं। मैं तो कुछ सीखने का प्रयास करता हूँ । बाकी लोग सोचते हैं कि हमने ऑफिस में समय दिया, घर में समय देना होता है। मैं समझता हूँ कि अब घर में काम तो होता ही है। छुट्टी के दिन भी होता है। जैसे इतवार के दिन बाजार के काम होते ही हैं। हम तो शिड्यूल बना लेते हैं। घर से दो घण्टे पहले निकल जाते हैं।
शैक्षिक अधिवेशनों में इसके बारे में बताना चाहिए। वर्ष में एक बार जो छह दिवसीय ट्रेनिंग होती है, उसमें भी बताएँ। बल्कि अच्छा हो कि उसमें एक दिन अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन के तरीक से ट्रेनिंग करवाएं। फाउण्डेशन में भी एक दिन की या दो दिन की ट्रेनिंग करवाएँ। क्योंकि यहाँजिस तरह से काम होता है उससे यहाँ जो शिक्षक आएँगे, उन्हें कुछ अतिरिक्त मिलेगा ही। वे जरूर कुछ सीखकर जाएँगे। बहुत से शिक्षक हैं जो काम करना चाहते हैं। सरकारी आदेश से कम से कम एक बार तो इस फोरम में शिक्षकों का आने के लिए कहा जाए। क्योंकि अभी तो उनकी जानकारी ही नहीं है। बाद में तो वे खुद ही आएँगे। हर स्कूल से विषयवार शिक्षकों को बुलवाकर ट्रेनिंग करवानी चाहिए।
अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन के बिना भी यह मंच चल सकता है। शिक्षकों की संख्या कम होगी , पर हम मिलकर चला सकते हैं।
मंच का आकर्षण : तीन बातें
पहला तो अपने समान विचारधारा के शिक्षकों से, लोगों से मुलाकात हो जाती है। दूसरा अपने विषय को लेकर जो समस्याएँ हैं उन पर एक-दूसरे से चर्चा का मौका होता है। और यहाँ कि जो शिक्षण विधियाँ हैं वे अच्छी हैं।
(बुद्धिप्रकाश साँवल, सोहेला, टोंक, राजस्थान की उच्च प्राथमिक शाला में प्रधानाध्यापक हैं। उनसे अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन के टोंक कार्यालय में मीरा गोपीचन्द्रन तथा राजेश उत्साही ने बातचीत की। लिप्यांतरण तथा सम्पादन : राजेश उत्साही )