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निधि यादव : मैंने जो किया, उससे सीखा भी...

By | मार्च 20, 2013

'मेरा प्रयास रहा है विद्यालय में बच्‍चों का ठहराव सुनिश्चित करते हुए उनके सर्वांगीण विकास के लिए अपने कार्य के प्रति पूर्ण ईमानदारी‚समपर्ण व तत्परता का समायोजन करते हुए लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होना। अँग्रेजी व विज्ञान जैसे विषयों को सरस व रोचक बनाकर बच्‍चों के सम्मुख प्रस्तुत करना तथा उनके दैनिक जीवन से इन विषयों को जोड़ना।
छोटी कक्षाओं के बच्‍चों की शिक्षा के सुदृढ़ीकरण हेतु आवश्यकतानुसार लेखन व पठन कार्य करवाना। रटने की प्रवृति से बालक को स्वतन्त्र चिन्तन व मनन करने के अवसर प्रदान करते हुए भयमुक्त वातावरण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना। क्या ? क्यों व कैसे के प्रति उनकी जिज्ञासा उत्पन्न करना।' यह कहना है निधि यादव का। 

विद्यालय के बारे में

यह विद्यालय राजस्थान के टोंक जिले की निवाई तहसील से 9 किमी दूर झिलाय रोड के उत्‍तर में स्थित है। इसकी स्थापना 02 अक्टूबर 1963 को गोपालपुरा ग्राम में की गई। जनवरी 2008 में विद्यालय क्रमौन्नत होकर उच्च प्राथमिक हुआ। यहाँ छह अध्यापक हैं। इनमें पाँच पुरुष व एक महिला है। दो सौ छह बच्चे नामांकित हैं। विद्यालय में छह कमरे हैं। एक प्रधान अध्यापक कक्ष है। एक स्टोर है। एक रसोई है। चारदिवारी बन रही है। विद्यालय तक पहुँचने के लिए पक्का सड़क मार्ग है। चारों तरफ खेत हैं। विद्यालय प्रांगण में बहुत से छायादार वृक्ष लगे हुए हैं।

विद्यालय की शैक्षणिक स्थिति

इसी विद्यालय में मेरी प्रथम नियुक्ति 2008 में हुई। प्रारम्भ में मुझे कक्षा एक व दो पढ़ाने के लिए दी गई। छोटे बच्‍चों को अँग्रेजी व हिन्दी वर्णमाला का ज्ञान नहीं था। मैंने पाया कि यहाँ कोई भी बच्चा हिन्दी नहीं बोलता था। सभी बच्चे स्थानीय भाषा बोलते थे। स्‍थानीय भाषा मुझे भी पूरी तरह समझ नहीं आती थी। सभी बच्चे पढ़ने में कमजोर थे। हिन्दी किताब भी नहीं पढ़ सकते थे। अँग्रेजी तो बहुत दूर की बात थी। उनके पास किसी भी प्रकार की शिक्षण सामग्री का अभाव था।

जो समस्याएँ मैंने पहचानीं उन्हें इस तरह देखा जा सकता है

  1. छोटे बच्चे समय पर विद्यालय नहीं आते थे।
  2. बच्‍चे साफ सुथरे नहीं आते थे।
  3. कक्षा एक व दो के बच्‍चों को हिन्दी वर्णमाला का बिल्कुल ज्ञान नहीं था।
  4. बच्‍चों के पास शिक्षण सामग्री का नितान्त अभाव था। छोटे बच्‍चे पैंसिल के स्थान पर बाल-पेन का प्रयोग करते थे।
  5. बड़े बच्चों का लेखन स्तर बहुत ही खराब था।
  6. बच्चे कक्षाकार्य व गृहकार्य की कॉपियाँ नहीं बनाते थे। गृहकार्य समय पर नहीं करते थे। गृहकार्य करने में अरुचि थी। मैंने देखा बच्चों को पढ़ने के साथ-साथ लिखना भी नहीं आता है। मैंने उनकी कॉपी में पुराने काम को देखा तो पाया कि बच्चों को घर के लिए काम तो दिया जाता है‚ पर उसे चेक नहीं किया जाता। इससे मुझे समझ आया कि बच्चों की होमवर्क के प्रति अरुचि क्यों है।
  7. अध्यापकों के साथ बातचीत में बच्चे झिझक व संकोच का अनुभव करते थे।
  8. अँग्रेजी व विज्ञान जैसे विषयों में बच्चों की सीख बहुत कम थी। छोटे बच्चों को अँग्रेजी व हिन्दी की कविताएँ नहीं आती थीं। बच्चे अँग्रेजी की किताब सही ढंग से नहीं पढ़ पाते थे। बच्चे दैनिक जीवन में अँग्रेजी के शब्दों का उपयोग बिल्कुल भी नहीं करते थे।
  9. विद्यालय में विज्ञान किट उपलब्ध नहीं था।

इस स्तर को सुधारने के लिए मैंने जो लक्ष्य निर्धारित किए वे इस प्रकार हैं

छोटे बच्चों के लिए  

  1. कक्षा-कक्ष के वातावरण में सुधार लाना।
  2. बच्‍चों को समय पर विद्यालय आने तथा साफ-सुथरा रहने के लिए प्रेरित करना।
  3. कक्षा एक व दो के बच्‍चों को हिन्दी व अँग्रेजी वर्णमाला के बारे में बताना।  
  4. बच्‍चों को अँग्रेजी व हिन्दी की छोटी-छोटी कविताएँ सिखाना।
  5. गृहकार्य व कक्षाकार्य नियमित रूप से करवाना। गृहकार्य व कक्षाकार्य की कापी बनवाना।
  6. बच्‍चों को शिक्षण सामग्री जैसे कापी‚ स्लेट‚ पेंसिल‚ किताबें आदि उपलब्ध करवाना।
  7. लिखने के लिए पेंसिल के उपयोग को बढ़ावा देना।
  8. बच्चों की लिखावट में अपेक्षित सुधार करवाना।
  9. अभिभावकों से सम्पर्क करना।

कक्षा एक व दो के विद्यार्थियों के स्तर को सुधारने के लिए वार्षिक परीक्षा के पहले के दो महीनों को ध्यान में रखकर समय सीमा निर्धारित की गई ताकि वार्षिक परीक्षा 2008 में विद्या‍र्थी अपेक्षाओं के अनुरूप खरे उतर सकें।

बड़े बच्चों के लिए

  1. बालक-बालिकाओं को विद्यालय गणवेश में आने के लिए प्रेरित करना।
  2. अँग्रेजी व विज्ञान विषयों में उनकी रुचि जागृत करना।
  3. बच्‍चों को अध्यापकों के साथ खुलकर बातचीत करने के लिए प्रेरित करना।
  4. विज्ञान के प्रयोगों में बच्‍चों की रुचि जागृत करना। विज्ञान प्रयोगों के लिए सम्बन्धित सामग्री विद्यालय में उपलब्ध करवाना।
  5. बच्‍चों को अँग्रेजी के छोटे-छोटे शब्दों को बोलने का अभ्यास करवाना। उनका हिन्दी अर्थ स्पष्ट करना।
  6. कक्षा व गृहकार्य की कॉपियाँ बनवाना‚उनमें नियमित रूप से कार्य करवाना तथा उनकी नियमित रूप से जाँच करना।
  7. बच्‍चों के लेखन स्तर में सुधार करना।

किए गए प्रयासों का विवरण : कक्षा में वातावरण निमार्ण

कक्षा में वातावरण निर्माण का प्रयास किया। बच्‍चों को सुव्यवस्थित तरीके से कक्षा कक्ष में बिठाया। उन्हें समझाया कि कक्षा से जब बाहर जाते हैं तब पूछकर जाते हैं। रोचकता उत्पन्न करने के लिए कविताएँ‚ कहानियाँ सुनार्इं। बच्‍चों को शिक्षण सामग्री यानी पेंसिल‚ कॉपी तथा किताबें आदि लेकर आने के लिए प्रेरित किया। बच्‍चों को रोजाना नहा धोकर‚ साफ सुथरे कपड़े पहनकर आने के लिए प्रेरित किया।

मैंने बच्चों से उनकी व उनके परिवार की बातें करना प्रारम्भ किया। अगर कोई पिछले दिन नही आया था तो उससे पूछती‚कल क्यों नहीं आए। क्या बात हुई आदि। जिस बच्चे को थोड़ा परेशान देखती उससे उसकी समस्या जानती। उसके समाधान पर उससे चर्चा करती। सभी के बारे में पूछती। जैसे- पापा क्या करते हैं ? माँ क्या करती हैं? कितने भाई-बहन हैं? सबसे अच्छा कौन लगता है? इस तरह धीरे-धीरे बच्चे मुझसे खुलकर बात करने लगे।

विद्यालय के कुछ बच्चे स्थानीय भाषा के स्थान पर शुद्ध हिन्दी या अँग्रेजी के शब्दों को बोलने का प्रयास करते तो अन्य बालक उनका मजाक उड़ाते थे। जिस कारण जानते हुए भी वे बालक बोलने में झिझक महसूस करते थे। मैंने उन बच्‍चों को समझाया तथा मजाक उड़ाने वाले बच्‍चों  को भी ऐसा न करने के लिए प्रेरित किया।

कक्षा में टीएलएम का उपयोग

स्कूल में हर अध्यापक को टीएलएम के पाँच सौ रुपए प्रति माह मिलते हैं। इस राशि से हम बाजार से शिक्षण सामग्री जैसे चार्ट (बॉडी पार्ट‚ एबीसीडी‚ फ्रूट के नाम आदि) आदि खरीदकर लाए हैं। साईंस किट लाए हैं। एसएसए क़ी तरफ से भी साईंस किट मिला है। मैं कभी-कभी स्कूल में अपने घर से लेपटॉप लेकर आती हूँ। वह कैसे काम करता है यह भी बच्चों को बताती हूँ। कभी-कभी उन्हें फिल्म भी दिखाती हूँ‚ जैसे लगान‚ थ्री इडियट आदि।

अभिभावकों से सम्पर्क

गाँव में जाकर बच्‍चों के अभिभावकों व परिवार वालों को उनकी पढ़ाई के बारे में जागरूक किया। बच्‍चों की स्थितियों से अवगत करवाया। जैसे बच्चा काफी प्रयास के बाद भी सही पढ़ नहीं पा रहा है‚या उसने क्या कुछ सीख लिया है या कुछ बच्चे बिना वजह मारपीट करते हैं सभी बातें अभिभावकों को बताती हूँ। उनसे सलाह लेती हूँ। इससे उनको अपने बच्चे के बारे में सभी जानकारी होती है।

अँग्रेजी के शिक्षण के लिए प्रयास

सबसे पहले मुझे कक्षा एक व दो ही दी गईं। मैंने सबसे पहले बोर्ड पर लिखकर तथा उन्हें बुलवाकर पढ़ाना शुरू किया। मैं अँग्रेजी के अक्षर बोर्ड पर चार लाईन बनाकर ही लिखती थी। इसके बाद बच्चों को स्लेट व बोर्ड पर लिखवाना शुरू किया। फिर वर्णमाला लिखने का अभ्यास करवाने के लिए चार लाइन की कॉपी मँगवाई तथा छोटी व बड़ी वर्णमाला का लगातार अभ्यास करवाया। मैंने बच्चों के दो ग्रुप बनाए। एक ग्रुप  जो पहचानना और बोलना, लिखना सीख रहा था तथा दूसरा जिसे अभी इसमें थोड़ी दिक्कत आ रही थी। मैंने तीन महीने तो बोर्ड पर लिखकर उनसे बुलवाया समझाया। इसके बाद उनको इसे कॉपी में करने को दिया। मैं उन्हें कोई होमवर्क नहीं देती थी‚ केवल याद करने के लिए ही देती थी। बाकी सभी कार्य उन्हें कक्षा में ही करवाए जाते थे।

मैंने स्कूल में रोज होने वाले कामों में उपयोग होने वाले शब्दों को अँग्रेजी में बोलने की आदत की शुरुआत की। मैं स्वयं बोलती ‚उनसे बुलवाती‚ उसका अर्थ समझाती। धीरे-धीरे वे भी बोलने लगे। फिर धीरे-धीरे मैं उनसे हर बात अँग्रेजी में करने लगी। बच्चे बहुत जल्दी सीखते हैं। इस तरह उन्हें समझ में आने लगा कि इन बातों को अँग्रेजी में कैसे बोला जाता है। धीरे-धीरे उनकी झिझक खुलने लगी। धीरे-धीरे बच्चों को अँग्रेजी से हिन्दी करने का अभ्यास करवाया। यदि बच्‍चों  को पाठ की मीनिंग याद होते हैं तो वे काफी हद तक अँग्रेजी में अनुवाद ठीक ठाक कर लेते है। ग्रामर से सम्बन्धित सभी कार्य मैंने अपने स्तर पर बच्‍चों की कॉपी में करवाए तथा उनका अभ्यास करवाया है। इसके लिए मैंने बहुत सारे इससे सम्‍बन्धित रिक्त स्थान बनाए‚ प्रश्न बनाए और इन्हें बच्चों से नियमित करवाया। निबन्‍ध को बिन्दुवार लिखवाना शुरू किया। इससे रोचकता व सरलता आने लगी।

बड़ी कक्षा में अँग्रेजी की किताब को पढ़ने का नियमित अभ्यास करवाया। बच्चों को नए-नए अँग्रेजी व हिन्दी के गीत कविताएँ इत्यादि याद करवाईं। नियम से 5-5 या 10-10 मीनिंग याद करके लाने के लिए दिए। हर शनिवार को मीनिंग की अन्ताक्षरी का नियमित आयोजन किया। कभी-कभी जब बच्चे पढ़ते-पढ़ते थोड़ा सुस्त होते मैं तब ही उनसे अन्ताक्षरी खिलवाना शुरू कर देती थी। बहुत सी बार ऐसा हुआ कि स्कूल का समय ही खत्म हो जाता था और इनमें से कोई भी हार नहीं मानता था। यह अन्ताक्षरी मैं कक्षा के ही दो ग्रुप बनवाकर करवाती थी। धीरे-धीरे कक्षा 6 व 7 के बच्चे भी अन्ताक्षरी के लिए कहने लगे। अँग्रेजी इस तरह इनके लिए सरस व रोचक होने लगी।

विज्ञान शिक्षण पर ध्यान

मैंने विज्ञान को ज्यादा रूचिकर बनाने के लिए बच्चों के घर से बेकार हो गई सामग्री मँगवाई जैसे सेल‚ चुम्बक आदि। उनके साथ प्रयोग करवाए। जैसे पुराने सेल को खोलकर दिखाया कि उसमें इसमें क्या-क्या होता है। कुछ सामग्रियाँ मैं भी लेकर आई जैसे बीकर‚ परखनली‚ फिल्टर पेपर‚ लिटमस पेपर‚ लाल दवा‚ इत्यादि। सबसे पहले मैंने प्रयोग किए। उन्हें बच्चों को दिखाया। फिर उन्हें वही प्रयोग मेरे सामने करने के लिए दिए। धीरे-धीरे उन्हें यह सब अच्छा लगने लगा। अब बच्चे बिना झिझक के यह सब करने लगे हैं। इस सबसे उनकी रुचि इसमें बढ़ने लगी। उनसे खेती के बारे में भी बातें किया करती थी। जैसे खेती में क्या व कैसे कैसे होता है? जमीन उपजाऊ कैसे बनती है? किस मौसम में क्या बोया जाता है? फिर उनको बताया कि यह भी विज्ञान ही है‚ आदि।

बच्चों को लैंस व दर्पण में अन्तर तथा उनके नियमों को समझने में अधिक कठिनाई का अनुभव हुआ। इसके लिए मैंने प्रत्यक्ष रूप से दर्पण व लैंस को दिखाकर तथा विभिन्न उदाहरणों द्वारा समझाकर बच्‍चों  के संशय को दूर किया। विज्ञान विषय से सम्बन्धित विभिन्न चार्ट मैंने बच्‍चों से बनवाए।

बच्चों के गृहकार्य पर ध्यान

पासबुक से याद करने व गृहकार्य करने पर पूर्णतया अंकुश लगा दिया। जिस प्रश्न का उत्‍तर अध्याय में नहीं दिया होता‚उसे मैं अपनी भाषा में बच्‍चों को लिखवाती हूँ।

मैं लिखने से सम्‍बन्धित अधिकतर काम स्कूल से ही करवाती हूँ। बहुत कम कार्य घर के लिए देती हूँ। यह भी बड़ी कक्षा के बच्चों को ही देती हूँ। घर के लिए मैं याद करने के लिए ही देती हूँ। मैं लगभग नियमित कार्य को चैक करती हूँ। इसके लिए समय कम पड़ता है किन्तु उसे मैनेज करती हूँ। कुछ बच्चों का कार्य को शनिवार को भी चैक करती हूँ । जिन बच्चों थोड़ा अधिक आता है उनको इसमें शामिल भी करती हूँ ।

जो बालक पढ़ने में कमजोर थे‚ समय पर गृहकार्य करके नहीं लाते थे‚ उनके अभिभावकों से सम्पर्क करके इसमें सुधार लाने की कोशिश की।

कुछ और परिवर्तन‚जो मैंने देखे

  1. सबसे पहले तो गाँव के लोगों से अत्यधिक स्नेह व सम्मान प्राप्त होने लगा। क्योंकि जब बच्चे घर जाकर माता-पिता को अध्यापन कार्य के बारे में बताते है तो अभिभावकों को खुशी होती है कि उनके बच्‍चों पर ध्यान दिया जा रहा है।
  2. गाँव के लोग विद्यालय से जुड़ने लगे है। विद्यालय की समस्याओं को सुलझाने में उनकी भागीदारी बढ़ रही है। निजी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे भी हमारे विद्यालय में प्रवेश ले रहे हैं।
  3. विद्यालय नामांकन तेजी से बढ़ रहा है। आसपास के अधिकांश गाँवों के बालक हमारे विद्यालय में प्रवेश लेने के इच्छुक हैं।

इस प्रयास से जो मैंने सीखा

  1. यदि बच्चों को उनके सीखने का परिणाम सकारात्मक मिलता है तो वे जल्दी सीखते हैं। बच्‍चे को सिखाते वक्त उसकी सफलता का ज्ञान करवाना आवश्यक है।
  2. कुछ बच्‍चे शीघ्रता से सीखते हैं। कुछ थोड़ा समय लेते हैं। जबकि कुछ को सामान्य से अधिक का समय लगता है। यदि किसी कार्य को सीखने में हमारी रुचि है तो शीघ्रता से सीखते हैं।
  3. अध्यापक को बच्‍चों  के साथ धीरज व संयम बरतते हुए कार्य करना चाहिए।
  4. नवीन ज्ञान को बच्चों के पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित करके सिखाते हैं तो वे जल्दी सीखते हैं।
  5. किसी कार्य को छोटे-छोटे खण्ड़ों में करके सिखाया जाए तो जल्दी सीखते हैं।
  6. बच्‍चों  को उनके बौद्धिक स्तर के अनुसार समूह में बाँटकर अध्यापन कार्य करवाना बेहतर होता है।
  7. कक्षा में बच्‍चों  के पास जाकर उनके पास बैठकर अध्यापन करने से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाने में मदद मिलती है।

श्रीमती निधि यादव

  • अध्यापिका‚एमएससी‚बीएड
  • राजकीय उच्‍च प्राथमिक विद्यालय‚ गोपालपुरा‚झिलाय‚निवाई, जिला-टोंक (राज)
  • रुचियाँ : पढ़ना‚ संगीत सुनना‚ड्राईंग इत्यादि

 

 

 


वर्ष 2009 में राजस्‍थान में अपने शैक्षिक काम के प्रति गम्भीर शिक्षकों को प्रोत्‍साहित करने के लिए ‘बेहतर शैक्षणिक प्रयासों की पहचान’ शीर्षक से राजस्‍थान प्रारम्भिक शिक्षा परिषद तथा अज़ीम प्रेमजी फाउण्‍डेशन द्वारा संयुक्‍त रूप से एक कार्यक्रम की शुरुआत की गई। 20009 तथा 2010 में इसके तहत सिरोही तथा टोंक जिलों के लगभग 50 शिक्षकों की पहचान की गई। इसके लिए एक सुगठित प्रक्रिया अपनाई गई थी। श्रीमती निधि यादव वर्ष 2009 में शाला में बेहतर शै‍क्षणिक प्रयासों के लिए चुनी गई हैं। यह टिप्‍पणी पहचान प्रक्रिया में उनके द्वारा दिए गए विवरण का सम्‍पादित रूप है। लेख में आए विवरण उसी अवधि के हैं।  हम श्रीमती निधि यादव ,राजस्‍थान प्रारम्भिक शिक्षा परिषद तथा अज़ीम प्रेमजी फाउण्‍डेशन, टोंक के आभारी हैं।


 

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