विगत दो वर्षो की लगन, मेहनत, सीखने के प्रतिफलों के आधार पर इनका यही कहना है कि हमारे शिक्षा तंत्र में अगर शिक्षक /शिक्षिका शुरुआत कर दें तो असम्भव कुछ भी नहीं है आइडिया तो अपने आप आते रहते हैं।

शिक्षकों को ही अवसर तलाशने होंगे : महेश पुनेठा । स्कूल को समुदाय से कैसे जोड़ा जाए : फेसबुक परिचर्चा । यास्नाया पोल्याना : एक नामुमकिन सा सपना – रविकांत । बाल सहयोगी है गिजूभाई का दिवास्वप्न : मौहम्मद औवेश । नोहर चन्द्रा की पाठशाला : भास्कर चौधुरी । सृजन के मधुर गीत गाता एक विद्यालय : प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ । घण्टी एक तरह की गुलामी : विपिन जोशी । जहाँ बच्चे खुद करते हैं : राजीव जोशी । अकेले टेक्नोलॉजी नहीं है, स्कूलों की बीमारी का इलाज : कोंटारो टोमाया । कॉल सेन्टर (कहानी) : विजय गौड़ । एक झन्नाटेदार थप्पड़ (बचपन) : अनिल कार्की । बच्चों तथा विद्यालयों में रचनात्मकता : डॉ. नंद किशोर हटवाल । बच्चों की शिक्षा में बदलाव की जरूरत : रमेश उपाध्याय (साक्षात्कार) । जोशी सर, पुस्तकालय,दीवार पत्रिका और मैं : संजय कापड़ी । साठ घंटे की पाठशाला ( जीवन जागृति निकेतन विद्यालय) । शिक्षक के मनोविज्ञान का भी ध्यान रखना जरूरी : नितेश वर्मा
किताब पढ़ना यानि आगे बढ़ना (बाल साहित्य) : मनोहर मनु
क्या निजीकरण में है सरकारी शिक्षा का इलाज : दिनेश कर्नाटक

शैक्षिक सरोकारों को समर्पित उत्तराखण्ड के शिक्षकों तथा नागरिकों के साझा मंच द्वारा प्रकाशित पत्रिका शैक्षिक दखल का दसवाँ अंक (जुलाई 2017) ‘स्कूल कुछ हटकर’ विषय पर केन्द्रित है। इस अंक में कुछ ऐसे स्कूलों से परिचय कराने की कोशिश की गई है, जो आम धारणा के स्कूलों से बिलकुल अलग हैं।इस अंक में जो सामग्री है उसका एक अन्दाजा इस सूची से लगाया जा सकता है :
अभिमत। स्वतंत्रता,संवाद और विश्वास : प्रारम्भ : महेश पुनेठा । हमें जेल नहीं स्कूलों की आवश्यकता है : फेसबुक परिचर्चा । जहाँ बच्चे अपने मनपसन्द विषय से अपना दिन शुरू करते हैं : रेखा चमोली । बाल हृदय की गहराईयों में पैठना शिक्षा का सार : चिंतामणि जोशी । शिक्षक का सबसे बड़ा गुण, छात्र के प्रति लगाव और समत्व : साक्षात्कार : ताराचन्द त्रिपाठी । मनमर्जी का स्कूल : अंशुल शर्मा । कोई स्वप्न नहीं, सच था नीलबाग : साक्षात्कार : राजाराम भादू । कुछ आशाएँ,कुछ शंकाएँ : राजीव जोशी। आजादी की जमीन पर फलते-फूलते : प्रमोद दीक्षित ‘मलय’। घर भी और स्कूल भी : देवेन्द्र मेवाड़ी । एक अजीब स्कूल : व्याख्यान : अनुपम मिश्र । बड़े होकर अच्छे नागरिक और अच्छा इंसान बनना चाहते हैं : सुनील । जहाँ न कक्षा और न परीक्षा : मीनाक्षी गाँधी । सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं का एक मॉडल : डॉ.केवलानन्द काण्डपाल । हर विषय पर अपने तरीके से सोचते हैं बच्चे : दिनेशसिंह रावत । साहित्य-संगीत-कला के तालमेल की मिसाल : नरेश पुनेठा । दुर्गम का अनोखा सरकारी स्कूल : देवेश जोशी । जहाँ छुट्टी के बाद भी बच्चे घर नहीं जाना चाहते : सुनीता । एक गाँधीवादी के शिक्षा में प्रयोग : और अन्त में : दिनेश कर्नाटक ।

बच्चों के प्रश्नों को मरने न दें : महेश पुनेठा । प्रश्न न करने के पीछे का मनोविज्ञान : फेसबुक परिचर्चा । जब जवाब पता है तो सवाल क्यों ? : कालू राम शर्मा। उत्तर से मत डरिए, प्रश्न न पूछने से डरिए : देवेश जोशी । प्रश्न पूछने से हिचकिचाते बच्चे : कैलाश मंडलोई । बच्चे प्रश्न करने से क्यों डरते हैं ? : दिनेश कर्नाटक तथा अन्य उपयोगी लेख ।

पढ़ने की आदत को आंदोलन बनाने की जरूरत : महेश पुनेठा । हर शिक्षक के ज्ञान की सीमा होती है किताब : शरद चंद्र बेहार । बच्चे किताब नहीं पढ़ते, क्योंकि माता-पिता किताबें नहीं पढ़ते : जार्डन सैपाइरो । पढ़ने की संस्कृति मतलब किताब से दोस्ती : कैलाश मण्डलोई । लिखने के लिए पढ़ना जरूरी है : लोकेश ठाकुर । पढ़ने की संस्कृति में सहायक है दीवार पत्रिका : डॉ. केवलानंद कांडपाल
शैक्षिक गुणवत्ता बनाम पढ़ने-लिखने की संस्कृति : रमेशचन्द्र जोशी । पुस्तकें: मेरी दोस्त, मेरा ईश्वर : प्रेमपाल शर्मा । किताबों को पढ़ने का भी पाठ्यक्रम बनाना होगा : राजेश उत्साही से साक्षात्कार । विदेशों में पढ़ने की संस्कृति : डॉ.जीवनसिंह । एक कतरा उजास : सोनी मणि पाण्डेय । पुस्तक संस्कृति विकसित करने की जरूरत है : राजीव जोशी । कहानी : कैद में किताबें : दिनेश कर्नाटक

शैक्षिक दख़ल : अंक 6 ( जुलाई 2015) में
प्रारम्भ * भयमुक्त वातावरण : विचार और वास्तविकता * महेश चन्द्र पुनेठा। आलेख * स्कूली बच्चों में भय, तनाव एवं दुश्चिंता के प्रभाव * डॉ. केवलानंद कांडपाल । शिक्षा और भय * डॉ.शशांक शुक्ला । गौर तलब * गंभीर खतरे में स्कूल * रोहित धनकर। परिचर्चा * कैसा है भय और शिक्षा का रिश्ता ।कहानी * जाग तुझको दूर जाना * बिपिन कुमार शर्मा। बचपन * न इधर के रहे, न उधर के * जावेद उस्मानी । अनुभव * बिन पुस्तक जीवन ऐसा, बिन खिड़की घर जैसा * आकाश सारस्वत । भाषा की कक्षा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं अवसर * प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ । स्कूल में नाटक * रेखा चमोली। हर बच्चे में मुझे अपना बच्चा दिखता है * रामकिशोर पाण्डेय । परिसंवाद * सृजनात्मक लेखन के विकास में कार्यशालाओं की भूमिका * राजेश उत्साही । नजरिया * शिक्षक के लिए आवश्यक है बच्चों को समझना * रमेश चन्द्र जोशी। विचार * अपने सपने को जिंदा रखना होगा * आशुतोष भाकुनी ।अध्ययन * बालमन की पड़ताल * राहुल देव। पेंरेटिंग * पापा, वे ऐसे लहरा के क्यों चलते हैं ? * स्वतंत्र मिश्र ।संवाद * भय के बारे में बच्चे क्या सोचते हैं ? * बालसंवाद। अखबारों से * डॉ. दिनेश चन्द्र जोशी ।मिसाल * रमेश धारू : एक चलते-फिरते गतिविधि केन्द्र * अर्जुन सिंह। इस बार की पुस्तक * आज तुमने स्कूल में क्या पूछा? *राजीव जोशी। और अंत में * हम किस ओर जाना चाहते हैं ? * दिनेश कर्नाटक

शैक्षिक दख़ल : जुलाई, 2014 अंक में अपने शिक्षण अनुभवों को दर्ज करना भी एक जिम्मेदारी है : महेश पुनेठा । बच्चों को फेल करना समाधान नहीं है : एक परिचर्चा। उत्तराखण्ड में शिक्षा उद्यमिता : डॉ. अरुण कुकसाल । शिक्षा के सुधार कार्यक्रम एवं अध्यापक : डॉ.केवलानन्द काण्डपाल । बच्चों के सर्वांगीण विकास में बाल साहित्य की भूमिका : डॉ. प्रभा पंत । बाल साहित्य और इलैक्ट्रोनिकी माध्यम : नवीन डिमरी ‘बादल’ । वह असफल लड़का : अंतोन चेखव की कहानी । किस्सा पहली डयूटी का : शेफाली पाण्डे । निरीक्षण में सामान्य प्रश्न की क्यों ? : रमेश चन्द्र जोशी
जहां विषयों की दीवारें टूट जाती हैं : शिक्षिका रेखा चमोली की डायरी। बेहतर समाज के निमार्ण में शिक्षक की भूमिका : श्याम गोपाल गुप्त । ‘स्लो लर्नर’ शब्द को डिफरेंट लर्नर बनाना है : नीलाम्बुज सिंह। ये बच्चे हैं या कुली : डॉ. दिनेश चन्द्र जोशी । गांव के स्कूल में आधुनिक तकनीक से पढ़ाता एक शिक्षक : नंद किशोर हटवाल । शिक्षा के सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश : राजीव जोशी
शिक्षा में माध्यम भाषा की भूमिका : संगोष्ठी रपट
क्या हम अपने विद्यार्थियों को जानते हैं ? : दिनेश कर्नावट

इस अंक में प्रमुख लेख हैं :
सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में परिवेशीय भाषा की भूमिका : महेश पुनेठा
शिक्षण का माध्यम मातृभाषा ही क्यों हो ?
मातृभाषा से समृद्ध होगी शिक्षा : मदन मोहन पाण्डेय
भाषा, बोलियॉं और वर्चस्व : राजाराम भादू
शिक्षण के माध्यम के रूप में भाषा : डॉ0 रमाकान्त राय
भाषा शिक्षण में लोकभाषा की भूमिका : दिनेश चन्द्र भट्ट 'गिरीश'
भाषा सीखना तभी हो सकता है जब शब्दों को अर्थ मिलें : हेमलता तिवारी
तथा अन्य लेख

'शैक्षिक दख़ल' के जून 2013 के अंक में ‘प्रारम्भिक शिक्षा में वैज्ञानिक चिंतन’ पर कमल महेन्द्रू का व्याख्यान; शिक्षक को सक्षम बनाने पर प्रेमपाल शर्मा से बिपिन कुमार शर्मा की बातचीत; स्कूल की संस्कृति पर राजाराम भादू का लेख; अध्यापक और बचपन के प्रसंगों पर प्रकाश मनु का संस्मरण; शिक्षक के रूप में मनोहर चमोली ‘मनु’ की डायरी; कक्षा-शिक्षण में ब्रेख्तियन शैली के प्रयोग पर मनोज पाण्डेय के अनुभवों के अलावा विविध सामग्री है।

'शैक्षिक दख़ल' के इस अंक में शिक्षाविद प्रोफेसर ए.के.जलालुद्दीन से बातचीत ‘पाठ को पढ़ना: बच्चों को सामर्थ्य सम्पन्न बनाने की ओर’; परिचर्चा ‘स्वाधीन हुए बिना रचनात्मकता सम्भव नहीं’; पाठ्यपुस्तकों के बोझ तले सिसकती रचनात्मकता (महेश पुनेठा); अध्यापक की स्वायत्तता एवं जवाबदेही में संतुलन आवश्यक (केवल काण्डपाल); स्कूली पाठ्यक्रम और कविता का भविष्य (मोहन श्रोत्रिय) ; इस पेशे में जीवन का आनन्द प्राप्त किया (हयात सिंह चौहान); रचनात्मकता के विकास में शिक्षक संगठनों की भूमिका (दिनेश भट्ट) जैसे महत्वपूर्ण आलेख हैं।
कविता,कहानी,संस्मरण तथा अन्य नियमित स्तम्भ भी हैं।