एक शिक्षिका ने एक विशेष प्रकार की गतिविधि से बच्चों पर ऐसा प्रभाव डाला है कि छोटे से गाँव के ज्यादातर मजदूर किसानों के बच्चे अपने बड़े बुजुर्गों के साथ सम्बन्धों का महत्त्व जान रहे हैं। ये बच्चे अपने मददगार व्यक्तियों के प्रति आभार जताने के नए तरीके सीख रहे हैं। साल में दो-तीन मौकों पर इस...

शिक्षा विमर्श के मार्च-अप्रैल, 2015 अंक में ।। व्याख्यान * लड़कियों का बचपन और उनकी शिक्षा : कृष्णकुमार ।। शिक्षा का समाजशास्त्र * औपचारिक संगठनों के माध्यम से शिक्षा : अमन मदान ।। बहस : की-बोर्ड बनाम कलम : एन.चेमिन ।। पुस्तक समीक्षा * नागरिक साहस के निमार्ण की चुनौतियाँ : रविकान्त ।। अध्ययन * गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में शिक्षा का अधिकार एवं समावेशन : बेंगलूरु और दिल्ली में किया गया एक खोजपरक अध्ययन : अर्चना मेहेंडले, राहुल मुखोपाध्याय एवं एनी नामला ।। शोध सार * शिक्षा से वंचना की स्थितियाँ : राजाराम भादू ।। बालसाहित्य * बालसाहित्य की विषयवस्तु : प्रभात

शिक्षा विमर्श के जनवरी-फरवरी,2015 अंक में परिप्रेक्ष्य * महिला शिक्षा के समक्ष समसामयिक समस्याएँ : भ्रामक लक्ष्य की दिशा में : नंदिनी मांजरेकर। साक्षात्कार * निजी स्कूल की फीस का निधार्रण, मुनाफाखोरी पर लगाम की कोशिश : जस्टिस शिवकुमार शर्मा से निशी खण्डेलवाल की बातचीत । विश्लेषण * शिक्षा बचाओ आन्दोलन : मिसाल बौद्धिक दरिद्रता की : संजीव कुमार । शिक्षा का समाजशास्त्र * पूँजीवाद और शिक्षा : कुछ मौलिक मुद्दे : अमन मदान । अनुभव : एक स्कूल मैनेजर की डायरी के कुछ पन्ने : फ़राह फ़ारूकी । पुस्तक समीक्षा * शिक्षा की चिंता करता एक कथाकार : पल्लव

शिक्षा विमर्श के नवम्बर-दिसम्बर 2014 अंक में ...... शिक्षा का समाजशास्त्र * शिक्षा,बाजार का विकास और सामाजिक संघर्ष : अमन मदान । सन्दर्भ * डायरी लेखन से शिक्षा : शिवरतन थानवी । परिप्रेक्ष्य * शिक्षा के उद्देश्यों पर पुनर्विचार : क्रिस्टोफर विंच । अनुभव * एक स्कूल मैनेजर की डायरी के कुछ पन्ने (तेरहवीं किस्त) : फ़राह फ़ारूख़ी । अनुभव * उलझे पेचों को सुलझाने की एक दास्तान : कब आऊँ? : रविकान्त आलेख * जनशिक्षा के पैराकार डॉ. भीमराव अम्बेडकर : निरंजन सहाय । सामयिक * आखिर ‘बालक’ कौन? कानूनी उलझनें और बच्चों का भविष्य : कंचन शर्मा । बहस–एक * गैर जिम्मेदाराना फैसले और शिक्षा का पेंडुलम : रोहित धनकर । बहस-दो * बोर्ड परीक्षाओं के खौफ में बचपन : राजीव गुप्ता

समाजशास्त्र * जटिल समाजों में शिक्षा : अमन मदान । साक्षात्कार * मुसलमानों की शिक्षा : राधिका चतुर्वेदी की फरीदा खान से बातचीत । शोध * शिक्षा का अधिकार : प्रियंका, योगेन्द्र एवं सुधीर
। अनुभव * एक स्कूल मैनेजर की डायरी के कुछ पन्ने (बारहवीं किस्त) : फ़राह फ़ारूख़ी । लेख * स्कूली शिक्षा में भाषा के कुछ सवाल : मनोज चाहिल। बहस * प्रार्थना पर एक बहस : विजय विशाल

शिक्षा विमर्श के जुलाई-अगस्त 2014 अंक में । इतिवृत्त : ‘सा विद्या या विमुक्तये’ शिक्षा की भारतीय दृष्टि * नन्द किशोर आचार्य । शिक्षा का समाजशास्त्र * अमन मदान । दार्शनिक परिप्रेक्ष्य : आखिर शिक्षा के मायने क्या हैं?* रोहित धनकर । शोध : स्कूलों में सैन्यीकरण * पायल । अनुभव : डूयई मेरे स्कूल आते तो * कृष्ण आर्य । शोध सार : शिक्षा में आधी-आबादी की भागीदारी : एक कठिन डगर : प्रमोद । बाल साहित्य समीक्षा : ममता कालिया का बाल-साहित्य : पल्लव

शिक्षा विमर्श के मई-जून,2014 के अंक में अन्य सामग्री के अलावा अनीता रामपाल द्धारा 'डमरू इंटरनेशनल सेमीनार' में पढ़ा गया एक महत्वपूर्ण परचा प्रकाशित हुआ है। यह परचा बताता है कि खुशनुमा ढंग से सीखना या गतिविधियों से सीखना जैसी अच्छी बातें भी जब ढर्रे में तब्दील हो जाती हैं तो उन्हें सवालों के घेरे में लाना जरूरी हो जाता है।

शिक्षा विमर्श के मार्च-अप्रैल 2014 अंक में निम्न लिखित आकर्षण हैं – जेन साही के आलेख : 'संवाद के रूप में शिक्षा : मार्टिन बूबर' का दूसरा भाग। प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी से हुमा अंसारी की बातचीत : 'भारतीय चिन्तन परम्परा में ज्ञान, विद्या और कौशल' का दूसरा भाग। फ़राह फ़ारूकी की 'एक स्कूल मैनेजर की डायरी के कुछ पन्ने' का ग्यारहवां भाग। सुशील जोशी द्वारा प्रस्तुत शोध सार : 'बहु-कक्षा बहु-स्तर' की समीक्षा।

शिक्षा विमर्श के जनवरी-फरवरी,2014 अंक में : मार्टिन बूबर के शिक्षा सम्बन्धी सिन्द्धातों पर ज़ेन साही के विवेचन का पहला भाग । प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी से हुमा अंसारी की बातचीत का । पहला भाग । स्कूल में बच्चों की पिटाई पर हुए अध्ययन की रपट पर लतिका गुप्ता । एक स्कूल मैनेजर की डायरी के पन्ने (फ़राह फ़ारूक़ी) की दसवीं किश्त।

शिक्षा विमर्श के इस अंक में है : सीखने सम्बन्धी मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का संक्षिप्त इतिहास: जेरोम ब्रूनर ।
एक स्कूल मैनेजर की डायरी के कुछ पन्ने: स्कूल का चलना और जेण्डर कमेटी : फ़राह फ़ारूक़ी ।
राजस्थान की अँग्रेजी की पाठपुस्तकों पर प्रियंका गोस्वामी का लेख: आशा-निराशा के बीच ।
बाल-साहित्य इन दिनों : नई किताबों पर पल्लव।
पहाड़ सा बोझ पहाड़ों का : रविकान्त।
रोहित धनकर के ब्लाग पर चली बहस :आरम्भिक शिक्षा सार्वजनीकरण क्यों?

शिक्षा विमर्श पत्रिका के सितम्बर-अक्टूबर,2013 के अंक में राजस्थान की नई पाठ्यपुस्तकों की विस्तृत समीक्षा की गई है। इन पुस्तकों की समीक्षा के सन्दर्भ में लतिका गुप्ता,योगेन्द्र दाधीच,सुधीर सिंह, पल्लव,रविकांत,दिलीप एवं ज्योत्सना लाल के लेख हैं। इसी मुद्दे पर प्रोफेसर कृष्ण कुमार से विदूषी जोसफ की बातचीत भी है : बाल केन्द्रित शिक्षा की रूढ़ समझ पर। जाने-माने शिक्षाविद् विनोद रायना को याद करते हुए दो श्रद्धांजलि आलेख भी इस अंक में हैं।