एक शिक्षिका ने एक विशेष प्रकार की गतिविधि से बच्चों पर ऐसा प्रभाव डाला है कि छोटे से गाँव के ज्यादातर मजदूर किसानों के बच्चे अपने बड़े बुजुर्गों के साथ सम्बन्धों का महत्त्व जान रहे हैं। ये बच्चे अपने मददगार व्यक्तियों के प्रति आभार जताने के नए तरीके सीख रहे हैं। साल में दो-तीन मौकों पर इस...

लर्निंग कर्व का यह अंक शिक्षक-विकास के मुद्दों की जाँच-पड़ताल पर केन्द्रित है। इसके केन्द्रीय लेख शिक्षक-विकास की नीति और व्यवहार के बारे में हैं और विकल्प सुझाते हैं। कुछ अन्य लेख पाठ्यचर्या और उसकी वास्तविकताओं की विस्तृत चर्चा करते हुए लैंगिक संवेदनशीलता और सेवापूर्व शिक्षक-तैयारी के मुद्दों की पड़ताल करते हैं। निजी और सरकारी, दोनों तरह की संस्थाओं से सम्बद्ध, जमीन पर काम करने वाले लोगों के लेख हैं। इस अंक में शिक्षकों ने अपने व्यावहारिक अनुभवों की याद भी ताजा की हैं।

लर्निंग कर्व हिन्दी अंक 13 : अक्टूबर, 2016 ‘भारत में सार्वजनिक शिक्षा तंत्र’ पर केन्द्रित है।

लर्निंग कर्व : मई,2016 ‘उत्पादक काम और शिक्षणशास्त्र’ अंक में
खण्ड क : परिदृश्य - नई तालीम,आज : कुछ समस्याएँ और सम्भावनाएँ * सुजीत सिन्हा । बुनियादी शिक्षा * डॉ. कृष्ण कुमार के कुछ विचार । बुनियादी शिक्षा का मूलतत्व * हृदय कांत दीवान
। कक्षा के बाहर काम और सोच-विचार के माध्यम से सीखना * अर्धेन्दु शेखर चटर्जी । नई तालीम : उत्पादक कार्य से सीखना : एक चिन्तन * प्रदीप दासगुप्ता
खण्ड ख : कार्यक्षेत्र से : जहाँ बच्चे ज्ञान निर्मित करते हैं * अमित भटनागर । काम और शिक्षा: थुलीर के अनुभव * अनु तथा कृष्ण । शिकक्षत्व की खोज * बिन्दुबेन । हमारी धरती, हमारा जीवन * दीवान सिंह नागरकोटी । निमार्ण,परवाह करने वाले समाज का * मीनाक्षी उमेश । सीखना जीवन भर * प्रेमा रंगाचारी । दैनिक जीवन में ऊर्जा की खोजबीन बनाम अन्तर्सम्बन्धों की खोज * राधा गोपालन
मशरूम उत्पादन से शिक्षा और उसका अन्य विषयों से सम्बन्ध * शहाबुद्दीन अन्सारी । मदद करते हुए सीखना * सुरेश कुमार साहू,राकेश टेटा और गुलशन यादव । समेकित तथा समग्र रूप से सीखने का एक सशक्त माध्यम * सुषमा शर्मा । काम पर केन्द्रित शिक्षा का लक्ष्यः महाराष्ट्र के माध्यमिक स्कूलों में बुनियादी प्रौद्योगिकी परिचय कार्यक्रम * योगेश कुलकर्णी
खण्ड ग : कुछ, बड़े स्तर के प्रयास - संवहनीय ढंग से जीना सीखनाः पर्यावरण मित्र कार्यक्रम पर आधारित विचार* प्रमोद शर्मा और ऐनी ग्रेगरी । अर्थियन कार्यक्रमः काम और शिक्षा के नजरिए से * शाहीन शाशा और श्रीकान्त श्रीधरन । ग्रीन स्कूल कार्यक्रमः कक्षा के बाहर का एक अनुभव * सुमिता दासगुप्ता

लर्निंग कर्व का यह अंक समावेशी शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर केन्द्रित है।

लर्निंग कर्व का यह अंक शाला में समर्थकारी वातावरण के निमार्ण पर केन्द्रित है। पूरा अंक तीन खण्डों में बँटा हुआ है।

आकलन अब सीखने की प्रक्रिया का बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाग बन चुका है।
यह अच्छी बात है कि आकलन की प्रक्रिया में जबरदस्त बदलाव हुआ है और आकलन को अन्ततः विद्यार्थी की अपनी क्षमताओं के साथ जोड़ा गया है, जो भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। सबके लिए एक से, तीर-तुक्के और अनुमान पर टिके तरीकों को त्याग दिया गया है और उनकी जगह आकलन के ज्यादा समझदारी भरे स्वरूपों को अपनाया गया है। अब निर्माणात्मक व योगात्मक आकलनों के दोहरे लाभ हमारे सामने हैं जिससे आकलन की समग्र प्रक्रिया सहभागिता-आधारित और पारदर्शी हो जाती है।
सतत और व्यापक मूल्यांकन (सी.सी.ई.) तथा निर्माणात्मक और योगात्मक आकलनों की व्यवस्था को लागू करके केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी.बी.एस.ई.) और अधिकांश अन्य परीक्षा मण्डलों ने बड़ी सफलता के साथ ज्यादा से ज्यादा बच्चों को इसके दायरे में शामिल कर लिया है।
इस अंक में ऐसे कई लेख हैं जिनमें लेखकों ने मिश्रित क्षमताओं वाले समूह में सबके सम्मिलित ढंग से सीखने के लक्ष्य के साथ पढ़ाने के अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा किया है। ऐसी शिक्षण कार्यविधियों ने (जो अब शिक्षण की तर्कसंगत पद्धति लगती हैं) जो बच्चों को अलग-अलग व्यक्ति के रूप में देखती हैं और कक्षा की समृद्धि के लिए हर बच्चे के योगदान को स्वीकार करती हैं, यह सुनिश्चित किया है कि हर बच्चा विश्वसनीय ढंग से अपनी गति से सीखे जिससे ‘अवलोकन, विश्लेषण, समीक्षात्मक सोच और सहयोगपूर्ण कार्यप्रणाली के वास्तविक जीवन सम्बन्धी कौशलों को’ हासिल करना निश्चित हो सके।
पूरा अंक तीन खण्डों में बँटा है।

सीखने-सिखाने के नवाचारी तरीकों,पर केन्द्रित लर्निंग कर्व के इस अंक में - पाठ्यपुस्तकों से लिए गए तरीके नहीं बल्कि ऐसी तकनीकें, तरकीबें हैं, जो समयसिद्ध और कारगर रही आई हैं। ये एकदम व्यावहारिक हैं और भारत की अधिकांश कक्षाओं में पाई जाने वाली साधारण से साधारण परिस्थितियों में भी इन्हें किया जा सकता है। अध्यापन की इन विधियों को आजमाने के लिए किसी विशेष उपकरण की जरूरत नहीं। विषय चाहे एक-दूसरे से कितने ही अलग क्यों न हों, पर इन सबको जोड़ने वाला सूत्र एक ही है - कुछ अलग करना, कुछ नया करना - जिसके चलते बच्चे सीखने की प्रक्रिया में इस कदर रम जाते हैं कि वे उम्मीद से ज्यादा करने की ठान लेते हैं।
इस अंक में देश भर से आए अलग-अलग स्तरों पर विभिन्न विषय पढ़ाने वाले अध्यापकों के लेख शामिल हैं।

लर्निंग कर्व का विशेष अंक जो स्कूल शिक्षा में कला पर केन्द्रित है, हिन्दी में उपलब्ध है।
इस अंक को चार भागों में प्रस्तुत किया गया है। पहले भाग में आवरण, सम्पादक टीम आदि की जानकारी, सम्पादकीय तथा इस अंक में प्रकाशित लेखों की सूची है। दूसरा भाग खण्ड अ : व्यापक परिदृश्य। तीसरा भाग खण्ड ब : चन्द परिप्रेक्ष्य। चौथा भाग खण्ड स : जो अनुभव किया ।

अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा अँग्रेजी में प्रकाशित लर्निंग कर्व का ‘शिक्षा में खेल’ अंक अब हिन्दी में अनुवादित हो गया है। इसके तीन खण्डों में विभिन्न उपयोगी लेख हैं, जो खेल और शिक्षा के सम्बन्ध को व्यापक परिप्रेक्ष्य में हमारे सामने रखते हैं।

इस अंक में स्कूल नेतृत्व के विभिन्न पहलुओं पर विचार विमर्श किया गया है। पूरा अंक चार खण्डों में विभाजित है। खण्ड ‘अ’ में स्कूल नेतृत्व के व्यापक मुद्दों को ध्यान में रखते हुए शैक्षणिक नेतृत्व, स्कूल के संदर्भ में नेतृत्व, स्कूल प्रधान की भूमिका, शिक्षा का प्रबन्धन आदि पर विभिन्न अनुभवी व्यक्तियों के लेख हैं। खण्ड ‘ब’ में नेतृत्व के परिप्रेक्ष्य में व्यक्तिगत तथा सामूहिक अनुभवों से उपजी अवधारणाओं की चर्चा की गई है। खण्ड ‘स’ में कुछ लेखक अपने शिक्षक या प्रधानाध्यापक को नेतृत्व के चश्मे से देखने का प्रयत्न कर रहे हैं। खण्ड ‘द’ में स्कूल नेतृत्व के संसाधनों के तौर पर विभिन्न वेबलिंक,संस्थाओं,किताबों तथा सन्दर्भों की जानकारी भी दी गई है। लर्निंग कर्व का यह अंक केवल स्कूल नेतृत्व ही नहीं बल्कि नेतृत्व की व्यापक अवधारणाओं को भी सामने रखता है।