शिक्षा सुधार
*शिक्षा में सुधार की दरकार*
*-माधव पटेल*
जिस प्रकार किसी भी भवन की मजबूती निर्भर करती है उसकी नींव पर,बुनियाद पर वैसे ही किसी भी देश का विकास उस देश में प्रचलित शिक्षा प्रणाली पर निर्भर होता है, देश के विकास और उन्नति में प्रत्येक नागरिक का अहम योगदान रहता है वो अपने ज्ञान, संस्कार और अच्छे आचरण के द्वारा देश को कामयाबी की ऊंचाइयों पर पंहुचा सकता है।किसी भी देश के व्यवस्थित संचालन में वहां की शिक्षित आवादी महत्वपूर्ण होती है ये देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चला सकते है परंतु यदि कही शिक्षा व्यवस्था में खोट हुई तो स्थिति इसके विपरीत हो सकती है। वर्तमान में जब वैश्विक बदलाव का दौर चल रहा है तब जरूरत है अच्छी और सक्रिय शिक्षा प्रणाली की जिससे ज्ञानवान और एक अच्छे आचरण और आत्मनिर्भर व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सके।विकसित देशों की ओर नजर करने पर देखते है जिस भी देश की शैक्षिक व्यस्थायें और प्रबंधन जितना अच्छा है वहां का विकास भी उसी अनुपात में है।जिसकी शिक्षा प्रणाली उच्च कोटि की है, उस देश का बहुत तेज गति से विकास भी हुआ है।अब यदि हम दृष्टि अपनी शिक्षा की तरफ करे तो ऐसे अनेक क्षेत्र दिखते है जहां सुधार करने की पूरी गुंजाइश है।जिससे मौजूदा कमियों को दूर किया जा सकता है।यदि देश को विश्व के विकास के साथ कदमताल मिलानी है तो शिक्षा व्यवस्था में सुधार करते हुए इसकी व्यवस्था की उच्च कोटि का करना होगा। इसमें कही दो मत नही की सरकार लगातार प्रयास कर रही है शिक्षा में सुधार के लिए परंतु अनेक प्रकार की विषमताओं जैसे आर्थिक, भौगोलिक, सामाजिक के कारण प्रयास पूरी तरह साकार नही हो पा रहे है। अभी नवीन शिक्षा नीति आने वाली है जिसमे बहुत सुधार की संभावना है। शिक्षा में सुधार के लिए हमे बहुत से तथ्यों को समझना आवश्यक है। हमारा देश गांवों का देश है शहरी स्तर पर तो ठीक है लेकिन आवश्यकता है ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक सुधार की। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के क्षेत्र में अनेक अनुत्तरित समस्यायें है बच्चों की ड्रॉपआउट दर अधिक है अनेक बच्चे प्राथमिक से माध्यमिक और माध्यमिक से हाई/हायरसेकंडरी विद्यालय में नही पहुच पाते हालांकि समग्र पोर्टल से इनका चिन्हांकन करने में सफलता मिली है लेकिन इसका मूल कारण है अभिभावकों का पलायन और बच्चों का घर के काम व अभिभावकों के सहयोग में संलग्न होना। ग्रामीण क्षेत्रों में 20-25 प्रतिशत कही कही तो इससे भी अधिक अभिभावक गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते है। यदि कृषि कार्य को मनरेगा से जोड़ा जा सके तो कुछ हद तक इससे निजात पाई जा सकती है। गांव में ही रोजगार मिलने से पलायन कम होगा,इसके साथ ही आवश्यकता है ग्रामीणों में शिक्षा के महत्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने की चूंकि वह स्वयं शिक्षित नही है तो उन्हें दोषी नही ठहराया जा सकता इसके लिए शाला प्रबंधन समितियों और बालकेविनेट को अधिक सक्रिय करने से सफल हुआ जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में दूसरी बड़ी समस्या है छात्र शिक्षक के अनुपात की छात्रों की संख्या में शिक्षकों का कम होना जहा शहरी क्षेत्रों में शिक्षकों की अधिकता है तो ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कमी है हालांकि शिक्षा का अधिकार लागू होने से बड़ी संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति तो हुई परन्तु विषय और पदस्थापना में कमी रह गई साथ ही छात्र शिक्षक अनुपात 20:1 कर दिया जाए तो सरकारी संस्थान निजी संस्थानों का मुकाबला आसानी से कर पाएंगे। इन कमियों के बावजूद भी परीक्षाओं का परिणाम सरकारी विद्यालयों का ही बेहतर होता है। यदि ऐसी नीति हो कि सभी शिक्षकों को एक निश्चित अवधि तक ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देना अनिवार्य है या फिर ग्रामीण शिक्षकों को अतिरिक्त प्रोत्साहन का प्रावधान हो चाहे किसी भी रूप में हो तो इस असंतुलन को कम किया जा सकता है और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की पूर्ति भी आसानी से हो जाएगी।साथ ही विषयानुसार नियुक्तियों का होना समस्या सुलझा सकता है। शिक्षा में सुधार के लिए पाठ्यक्रम में सुधार आवश्यक है पाठ्यक्रम हमेशा परिस्थितियों और जरुरतों के अनुसार अधतन होंते रहने की आवश्यकता है जैसे हम कीपैड मोबाइल से टचस्क्रीन तक आ गए,पैदल से हवाईजहाज तक का सफर तय कर लिया इसी प्रकार परंपरागत के स्थान पर आवश्यकतानुसार पाठ्यक्रम विकसित होना समय की मांग है।शिक्षा केवल पुस्तक ज्ञान तक सीमित नही हो बल्कि इसमें समाजीकरण की भावना और क्षमता के विकास से संबंधित सोच भी समाविष्ट हो पाठ्यक्रम ऐसे परिवर्तनशील हो कि बदलती समाज की आवश्यकताओ के अनुरूप ढल सके। समाज की स्थितियों का अध्ययन छात्रों को करवाया जाए जिससे वो समाज की ज़रूरतों को समझ सकें। विद्यालय केवल पुस्तक तक अंतर्निहित न रहे अपितु विद्यार्थी के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास पर जोर दे अंको के स्थान पर कौशलों को वरीयता मिले। यदि विद्यालयों में कौशल अाधारित शिक्षा को प्रमुखता दी जाए और छात्र को रुचिनुसार विषय चयन की स्वतंत्रता दी जाए तो छात्र आत्मनिर्भरता और स्वरोजगार की ओर अग्रसर होंगे जिससे स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम वास्तविक रूप में सफल हो सकते है और आत्मनिर्भरता कि जड़े मजबूत होगी। जरूरी है कि अब व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देते हुए एक मुख्य विषय के रुप मे पढाया जाये। आइसीटी,ई-लर्निंग अब शिक्षा का अनिवार्य अंग है इसलिये सभी विद्यालयों को स्मार्ट विद्यालय बनाये जाने का प्रयास किया जाना है हालांकि ये एक लंबी और खर्चीली प्रक्रिया हो सकती है परंतु शिक्षा के सुधार के लिए आवश्यक भी है। विद्यालय स्मार्ट बन जाने विद्यार्थियों में एक तो उदासीनता नही आएगी साथ बो आधुनिक तकनीक से भी वह रु-ब-रु हो सकेंगे। स्मार्ट क्लास में बच्चें बहुत तेज गति से सीखते है। शिक्षा में खेल को अनिवार्य अंग बनाया जाना चाहियें साथ यदि विद्यालय में खेल मैदान नही तो सप्ताह में एकनिश्चित दिन किसी भी उपलब्ध ग्राउंड पर खेल गतिविधियों का संचालन किया जा सकता है।शिक्षा के सुधार के लिए सबसे बड़ी जरूरत होगी आर्थिक सहयोग की इसके लिए देश के कुल बजट में आवंटित का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च किया जाना आवश्यक है। सबसे महत्वपूर्ण है कि अच्छा कार्य करने वाले शिक्षकों को सभी स्तरों पर प्रोत्साहित करने चाहिए जिससे दूसरे इससे प्रेरित हो सके।
माधव पटेल हटा दमोह
विचार आमंत्रित
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